वाल्मीकीय रामायण
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संस्कृत के तीनों महान ग्रन्थों — ‘वाल्मीकीय रामायण’, ‘महाभारत’ और ‘श्रीमद्भागवत पुराण’ — को उपजीव्य ग्रन्थ माना जाता है। उपजीव्य शब्द का अर्थ है — परवर्ती कवियों द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में इन रचनाओं से प्रभावित होना। इन तीनों ग्रन्थों में ‘वाल्मीकीय रामायण’ का प्रभाव सर्वाधिक है।
‘वाल्मीकीय रामायण’ को लौकिक संस्कृत का प्रथम महाकाव्य होने का गरिमापूर्ण स्थान प्राप्त है। वर्णन की सुन्दरता एवं मोहकता जैसी ‘वाल्मीकीय रामायण’ में उपलब्ध है, वैसी अन्य ग्रन्थों में नहीं है। यहां तक कि व्यास, कालिदास और गोस्वामी तुलसीदास जैसे कवियों ने भी महर्षि वाल्मीकि के काव्य से प्रभावित होने और उनके ऋण को स्वीकार करने में संकोच नहीं किया है।
‘वृहद् धर्म पुराण’ में तो यहां तक कहा गया है कि ब्रह्माजी ने व्यासजी को काव्य-रचना में प्रवृत्त होने से पूर्व ‘वाल्मीकीय रामायण’ पढ़ने का परामर्श दिया
पठ रामायणं व्यास काब्यबीजं सनातनम्।
रामायण के महत्त्व के सम्बन्ध में कहा गया है कि वेदों के श्रीमन्नारायणरूप परमतत्त्व ‘वाल्मीकीय रामायण’ में श्रीराम के रूप में निरूपित हैं। जिस समय परमपुरुषोत्तम नारायण राजा दशरथ के घर श्रीराम में प्रकट हुए, उस समय वाल्मीकि के मुख से वेद ही रामायण के रूप में मुखरित हुए थे।
रामायण में भारतीय धर्म, दर्शन, संस्कृति, राजनीति, शिल्प, कला साहित्य, संगीत, ज्योतिष, गणित, सांख्यिकी तथा अन्यान्य शास्त्रों का जैसा विशद, मनोरम और सर्वांगीण चित्रण हुआ है, उसे देखकर सचमुच आश्चर्य होता है।
जन्मभूमि को जननी के समकक्ष और स्वर्ग से भी अधिक सुखकर मानने की भावना सर्वप्रथम इसी ग्रन्थ में मुखरित हुई है।
ऐसे अमूल्य ग्रन्थ-रत्न का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है। आशा है, हमारे सभी पाठकों को यह विशिष्ट संस्करण अवश्य पसन्द आयेगा।
Editor
ओरिएंट पेपरबैक्स
Book Details
ISBN: 9788122204667 | Format: Paperback | Language: Hindi | Extent: 395 pp